रिपोर्ट-प्रवीण दवे
नशा मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल तथा बोजुंदा, देवरी और पंचदेवला गाँव में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें बच्चों और ग्रामीणों को नशा और उसके दुष्प्रभाव के बारे में वीडियो और उदाहरणों के माध्यम से समझाया गया। उन्हें बताया गया कि हमारा शरीर एक कीमती गाड़ी है—अगर उसमें शुद्ध ईंधन (संतुलित भोजन) की जगह नशा (गुटखा, सिगरेट, शराब आदि) डालें, तो वह खराब हो जाती है, और इसके “पुर्जे” (अंग) बाजार में भी नहीं मिल सकते।
कार्यक्रम में मौजूद बीके कविता बहन, बीके निहारिका बहन, बीके विजय भाई, बीके धनशेखरन भाई और बीके नील भाई ने विद्यार्थियों व स्थानीय लोगों को प्रतिज्ञा दिलाई कि वे नशे से दूर रहेंगे। सभी को पर्चे बांटे गए, जिनमें घरेलू नुस्खे लिखे थे जो नशा छुड़ाने में मददगार हैं। अंत में सभी ने मिलकर राजयोग का अभ्यास भी किया।

यह आयोजन सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे “नशा मुक्त भारत अभियान” का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर शिक्षा, परामर्श और नशामुक्ति जागरूकता फैलाना है। वर्ष 2025 तक 15 करोड़ से अधिक लोगों को इस अभियान से जागरूक किया गया है और लाखों लोगों का उपचार हुआ है, जिनमें स्कूल, कॉलेज और गाँव प्रमुख लक्ष्य हैं।
अभियान में सरकारी सहयोग के साथ-साथ ब्रह्माकुमारीज जैसे आध्यात्मिक संगठनों की भी सक्रिय भूमिका है